नीले विस्तार में
ना जाने
उसके मन में
क्या आई
कि अचानक
उसने मल दी
नीले विस्तार में
चहुंदिश कालिख !
अब तक
है सदमे में
बेचारा चॉंद
उस कालिख में
छुपाता अपना मुख ।
० ० ०
एक बूँद
ना भीगे
दरख्त
ना पत्ते
ना ही कहीं
पडी फुहारें
फकत
एक बूँद
ऑंख से तेरी
गिरी छलक कर
हो गया मैं
पानी-पानी।
० ० ०
चित्र सौजन्य- गूगल
Bahut shandar kavitayen ! Badhai ho !
ReplyDeletenamaskaar
ReplyDeleteye ve kavitaae hai jo ek baar padhne k baad chhod di jaaye , ek baar me man nahi tript hotaa , man k chhune wali hai , hardik badhai , umdaa kavitaaon k liye
बहुत खूबसूरती से उकेरे हैं आपने बिम्ब।
ReplyDeleteखूबसूरत बिम्ब...
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत...
ReplyDeleteअति सुन्दर!
ReplyDeleteवाह!
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