नतमस्तक हूं
========
मैने नहीं चखा
जेठ की दुपहरी में
निराई करते उस व्यक्ति के
माथे से रिसते पसीने को,
मैं नहीं जानता
पौष की खून जमा देने वाली
बर्फीली क्यारियों में
घुटनो तक डूबी
पानी में थरथराती बूढी अस्थियों को
मगर नतमस्तक हूं
थाली में सजी
इस रोटी के समक्ष।
0000
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मैने नहीं चखा
जेठ की दुपहरी में
निराई करते उस व्यक्ति के
माथे से रिसते पसीने को,
मैं नहीं जानता
पौष की खून जमा देने वाली
बर्फीली क्यारियों में
घुटनो तक डूबी
पानी में थरथराती बूढी अस्थियों को
मगर नतमस्तक हूं
थाली में सजी
इस रोटी के समक्ष।
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नए घरोंदों की नीव में
============
क्या ज़रुरत है जानने की
कि कोई चिड़िया
अभी अभी गई है यहाँ से
-नई बस्ती में उजड़ा,
अपना पुराना घौसला छोड़ कर-
वो जानती है
चाहे कितना भी उजड़ जाए
घरोंदा
नए घरोंदों की नीव में,
वह सदैव
लेकर जाती है साथ अपने
कुछ तिनके
पुनर्निमाण के-
और लौटती है
पहले से कहीं ज्यादा मज़बूती से
पुनःप्रवास के लिए अपने।
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क्या ज़रुरत है जानने की
कि कोई चिड़िया
अभी अभी गई है यहाँ से
-नई बस्ती में उजड़ा,
अपना पुराना घौसला छोड़ कर-
वो जानती है
चाहे कितना भी उजड़ जाए
घरोंदा
नए घरोंदों की नीव में,
वह सदैव
लेकर जाती है साथ अपने
कुछ तिनके
पुनर्निमाण के-
और लौटती है
पहले से कहीं ज्यादा मज़बूती से
पुनःप्रवास के लिए अपने।
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बहुत सुंदर रचनाएँ, कम शब्दों मे बड़ी बात।
ReplyDeletebahut sunder
ReplyDeleterachana
अभिभूत करती भावनाएँ शब्दों के झरोखों से झांक कर अपना परिचय दे राही है...
ReplyDeleteप्रतीकों के माध्यम से संघर्षों की सार्थक अभिव्यक्ति ! श्रेष्ठ लघु कविताएँ !
ReplyDelete--अशोक लव
कमाल है!
ReplyDeleteचुन-चुन कर शब्दों का आपने प्रयोग किया और क्या सुंदर संदेश देती रचना है यह!!
लाजवाब!!!
बहुत खूब नरेन्द्र जी।
ReplyDeleteदोनों रचनाएं बेहद संवेदनपूर्ण. शुभकामनाएं!
ReplyDeleteक्या ही कहने
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
बहुत ही सुंदर रचना.
ReplyDeleteअनुभव पर सर्वश्रेष्ठ सुविचार