Monday, June 17, 2013

नीले विस्‍तार में एक बूँद- कुछ बिम्ब

नीले विस्‍तार में

ना जाने
उसके मन में
क्‍या आई
कि अचानक
उसने मल दी
नीले विस्‍तार में
चहुंदिश कालिख !

अब तक
है सदमे में
बेचारा चॉंद
उस कालिख में
छुपाता अपना मुख ।
० ० ०  


एक बूँद

ना भीगे
दरख्त
ना पत्ते
ना ही कहीं
पडी फुहारें

फकत
एक बूँद
ऑंख से तेरी
गिरी छलक कर
हो गया मैं
पानी-पानी।
० ० ०
चित्र सौजन्य- गूगल

Friday, June 7, 2013

उठती है लहर

लहरा रही है
एक छोटी तरंग
सतह पर
उठती है कभी
अचकचा कर
धैर्य के साथ
यह जानते हुवे भी
कि धकेल दी जाएगी पुनः
उमड़ते हुए सागर की
सपाट सतह पर !

फ़िर भी
उठती है लहर
सागर के पौरुष पर
अक्षरबद्ध कविता सी
अपनी लय में !
***