नीले विस्तार में
ना जाने
उसके मन में
क्या आई
कि अचानक
उसने मल दी
नीले विस्तार में
चहुंदिश कालिख !
अब तक
है सदमे में
बेचारा चॉंद
उस कालिख में
छुपाता अपना मुख ।
० ० ०
एक बूँद
ना भीगे
दरख्त
ना पत्ते
ना ही कहीं
पडी फुहारें
फकत
एक बूँद
ऑंख से तेरी
गिरी छलक कर
हो गया मैं
पानी-पानी।
० ० ०
चित्र सौजन्य- गूगल