Thursday, August 30, 2012

क्षितिज के उस पार


अक्स को अपने


सर्द रातों में
चाँदनी
बर्फ बन ढली है
या
पिघल कर
चाँद उतर आया है
झील में !

अकेला हंस
तकता है-
अक्स को अपने

***

तुम हो तो



तुम हो तो
मौसम का
मखमली अहसास
गुदगुदाता है
जाने क्या बात हुई?
मौसम का मिजाज़
कुछ बदल रहा है
ठहर सी गई है लालिमा
सिन्दूरी बिंदी में तुम्हारी
जबकि
सूरज कब का ढल चुका है
एक कप
चाय की प्याली में

***

क्षितिज के उस पार

रात की चौखट पर
सूरज ने
दस्तक दी है
दिशाएँ शर्मा कर
सुर्ख हो गईं
पंछी भी
खिलखिलाकर हंस पड़े
उजाले ने
सारा राज़ खोल दिया
रात शर्मा कर
छुप गई है
क्षितिज के उस पर
***
 (चित्र साभार- गूगल)