Monday, April 8, 2013

थोड़ा वक्त तो लगेगा ही


अब- हमें
लौटना होगा
पुनः सम्भालना होगा
अपने इस घर को
लगानी होगी हर चीज़
करीने से
मुक्त करना होगा
घर का कोना-कोना
सन्नाटों के जालों से,
भरना ही होगा
गंदे बदबूदार गड्ढों को ।

जब भरूं - मैं;
दरारों से खिरती
पुरानी यादों के खारों को
नए अहसासों के
मीठे चूने से
तब भी तुम
यूं ही थामे रखना
मेरा हाथ !

नफ़रत की दीवारें हैं
फ़िर भी हमें
करनी है मरम्मत
थोड़ा वक्त तो लगेगा ही
तुम धीरज रखना
धरती की तरह !
**

Thursday, April 4, 2013

दो क्षणिकाऍं - वसंत के बाद


पहली बार जब
देखा था- तुम्हें
वसंत के दिन थे
मैंने तुम्हें कहा- जीवन
अबकी फिर वसंत आया
चला भी गया-
वन रह गया निरा
तुम बिन जो मै।
***

वसंत के गुजर जाने के बाद
यह जो मैं
झड चुके पत्‍तों की
सरसराहट सुनता हूं
तुम्‍हें पता है ?
इनमें में तुम्‍हारी
हँसी सुनता हूं।
***

Wednesday, April 3, 2013

तमाशा

एक जोरदार
धमाका
लहुलुहान पथ
यत्र तत्र बिखरे
रक्‍तरंजित चिथडे
कर्णभेदी चीखें
वीभत्‍स द्रश्‍य टीवी पर,
किसी बडे शहर में
बम विस्‍फोट के बाद

रिपोर्टरों की भरमार
तमाशा
मौत का तमाशा
कैमरे में
कैद करने की होड
अपनों को तलाशती भीड
हताश इधर उधर


पत्‍नी ने कहा
दस बज गए
मेरे प्रिय डेली सोप का  वक्‍त
अव्‍वाक सा मैं
रिमोट
पत्‍नी को थमा देता हूं
***